Swap Contract क्या होता है ?

Swap Contract क्या होता है ?

नमस्कार दोस्तों, Bazaareducation में आपका स्वागत है। आज हम इस Article में Swap Contract क्या होता है ? इस बारे में Complete Details में जानने वाले हैं।

जैसे कि ;- 1. Swap Contract क्या होता है ?

2. Swap Contract कितने Types के होते हैं ?

3. Swap Contract में कौन Trade करता है ?

4. Swap Contract के क्या Advantages होते हैं ?

5. Swap Contract के क्या Disadvantages होते हैं ?

1. Swap Contract क्या होता है ?

Swap Contract एक OTC मतलब की (Over-The-Counter) Derivative Contract होता है, जिसमें दो कंपनियाँ एक Fix Time Period के लिए और एक Fix Amount पर दो अलग-अलग Financial Instruments से Cash Flow और Liabilities को Exchange करने के लिए, यानि कि नकदी प्रवाह और देनदारियों का आदान-प्रदान करने के लिए आपस में एक दूसरे के साथ एक Contract साइन करती हैं, जिसमें एक Cash Flow (नकदी प्रवाह) Generally Fix होता है, यानी कि पहले से तय होता है, जबकि दूसरा Cash Flow (नकदी प्रवाह) Variable होता है, यानी कि परिवर्तनशील होता है, जो कि Benchmark Interest Rate, Index Price, Commodity Price, Floating Currency और Foreign Exchange Rate पर आधारित होता हैं। दोस्तों, इस तरह के Contracts को ही हम Swap Contract कहते हैं।

दोस्तों, अधिकांश Swap Contract, Loan या Bonds जैसी काल्पनिक मूल राशि (Principal Amount) के आधार पर ही तय किए जाते हैं, जिसके माध्यम से बाद में दोनों कंपनियाँ Cash Flow (नकदी प्रवाह) का आपस में आदान-प्रदान करती हैं।

चलिए, इसे हम एक Example के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं कि “Swap Contract” क्या होता है ?

मान लेते हैं कि ABC Limited और XYZ Limited नाम की दो कंपनियां हैं।

जिसमें ABC Limited नाम की कंपनी ने अपने बिजनेस को चलाने के लिए SBI (State Bank of India) Bank से 10% की Fix Interest Rate पर 20 करोड़ रुपयों का Loan लिया है।

जबकि XYZ Limited कंपनी ने HDFC (Housing Development Finance Corporation Limited) Bank से MIBOR + 4% Risk Premium के Floating Interest Rate पर 20 करोड़ रुपयों का Loan लिया है।

दोस्तों, अभी हम कुछ शब्दों को समझ लेते हैं जिससे कि आपको यह Example समझने में आसानी होगी।

जैसी कि ;- Fix Interest Rate, Floating Interest Rate, MIBOR और Risk Premium आदि।

Fix Interest Rate    

Fix Interest Rate का मतलब होता है कि जिस Interest Rate पर Bank ने कंपनी को Loan दिया है, वह हमेशा फिक्स ही रहेगा। बैंक उसे Loan के Time Period के बीच में कम या ज्यादा नहीं कर सकता है।

Floating Interest Rate  

Floating Interest Rate का मतलब होता है कि जो बाजार की स्थितियों के अनुसार हमेशा बदलता रहता है, Change होता रहता है। उसे हम Floating Interest Rate कहते हैं। दोस्तों, Floating Interest Rate, Benchmark Interest Rate, Index Price, Commodity Price, Floating Currency और Foreign Exchange Rate पर आधारित होता हैं, जो कि Economic और Financial Market की स्थितियों को दर्शाता है।

MIBOR 

RBI (Reserve Bank of India) द्वारा अन्य Banks को Loan (ऋण) देने के लिए तय की गई ब्याज दर को हम MIBOR (Mumbai Interbank Offer Rate)  कहते हैं।

अगर मैं आपको दूसरे शब्दों में बताऊँ कि MIBOR क्या होता है, तो इसे हम ऐसे कह सकते हैं कि भारत में जिस Interest Rate पर बैंक्स आपस में एक दूसरे को Loan देते हैं, उसे हम MIBOR ( Mumbai Interbank Offer Rate ) कहते हैं।

दोस्तों, ऐसे ही LIBOR (London Interbank Offer Rate) होता है, मतलब कि यूरोप में बैंक्स जिस Interest Rate पर आपस में एक दूसरे को Loan देते हैं, उसे हम LIBOR (London Interbank Offer Rate) कहते हैं।

दोस्तों, मैं आपको बताना चाहता हूँ कि MIBOR और LIBOR Interest Rate फिक्स नहीं होती हैं, यह आमतौर पर बाजार की स्थितियों, जैसे कि ब्याज दरों में परिवर्तन, आर्थिक विकास, मुद्रास्फीति, विदेशी मुद्रा बाजार और राजनीतिक अस्थिरता आदि के आधार पर बदलती रहती हैं।

बैंकों द्वारा दिए जाने वाले Floating Interest Rate की ब्याज दरों को भी MIBOR और LIBOR Interest Rate के आधार पर ही तय किया जाता हैं।

नीचे MIBOR और LIBOR का पिछले सालों का Interest Rates का Data दिया गया है।

MIBOR INTEREST RATES DETA
MIBOR INTEREST RATES DATA
LIBOR INTEREST RATES DETA
LIBOR INTEREST RATES DATA
Risk Premium 

जैसा कि दोस्तों नाम से ही पता चल रहा है कि जिस Investment में ज्यादा Risk होता है, उस Investment पर Bank कुछ प्रतिशत Extra Interest Rate जोड़ देता है। दोस्तों, उस Extra Interest Rate को ही हम Risk Premium कहते हैं।

For Example;- मान लेते हैं कि बैंक उन 20 करोड़ रुपयों को एक Risk-Free जगह निवेश करके भी उन पर सालाना तौर पर 2% या 3% का ब्याज कमा सकता था। लेकिन बैंक यहाँ पर ABC Limited कंपनी या XYZ Limited कंपनी को 20 करोड़ रुपयों का Loan देकर एक Risk ले रहा है। क्योंकि बैंक को यहाँ पर यह भी पता नहीं है कि वो कंपनियां वह पैसा वापस चुका भी पाएगी या नहीं, इसलिए बैंक उन 20 करोड़ रुपयों पर ABC Limited कंपनी या XYZ Limited कंपनी से कुछ प्रतिशत Extra Interest Rate Charge करेगा। क्योंकि बैंक यहाँ पर ABC Limited कंपनी या XYZ Limited कंपनी को Loan देकर एक जोखिम ले रहा है, जिसके बदले में वह उनसे कुछ प्रतिशत ज्यादा Interest की उम्मीद भी करता है।

दोस्तों, आगे आने वाले Articles में हम Fix Interest Rate, Floating Interest Rate, MIBOR , LIBOR और Risk Premium के बारे में विस्तार से जानेंगे।

तो दोस्तों, अभी हम अपने Swap Contract के Example को आगे बढ़ाते हैं।

तो दोस्तों, जैसा कि आपने ऊपर जाना, कि ABC Limited और XYZ Limited नाम की दो कंपनियाँ हैं।

जिसमें ABC Limited नाम की कंपनी ने अपने बिजनेस को चलाने के लिए SBI (State Bank of India) Bank से 10% की Fix Interest Rate पर 20 करोड़ रुपयों का Loan लिया है।

जबकि XYZ Limited कंपनी ने अपने बिजनेस को चलाने के लिए HDFC (Housing Development Finance Corporation Limited) Bank से MIBOR + 4% Risk Premium के Floating Interest Rate पर 20 करोड़ रुपयों का Loan लिया है।

मान लेते हैं कि XYZ Limited कंपनी द्वारा HDFC Bank से Loan लेते समय MIBOR Interest Rate 6% थी, तो इस स्थिति में, XYZ Limited कंपनी को अपने लिए गए Loan पर जिस Interest Rate से Interest Pay करना होगा, वह MIBOR Interest Rate + 4% Risk Premium (6% + 4% = 10%) होगा। मतलब कि XYZ Limited कंपनी को अपने लिए गए लोन पर Total 10 प्रतिशत के Interest Rate से Interest Pay करना होगा। जो कि आगे आने वाले समय में MIBOR Interest Rate के आधार पर कम या ज्यादा भी हो सकता है।

तो दोस्तों, अब मान लेते हैं कि कुछ समय बाद ABC Limited कंपनी को लगता है कि आगे आने वाले समय में MIBOR Interest Rate 6% से घटकर 4% होने वाला है। जिसके कारण ABC Limited कंपनी को लगता है कि उसे अपने लिए गए Loan पर आगे आने वाले समय में ज्यादा Interest Pay करना पड़ेगा। क्योंकि ABC Limited कंपनी ने 10% के Fix Interest Rate पर Loan लिया था जो कि हमेशा फिक्स रहता है। जबकि ABC Limited कंपनी के According आगे आने वाले समय में Floating Interest Rate 4% + 4% = 8% होने वाला है। जिसका मतलब है कि आगे आने वाले समय में ABC Limited कंपनी को अपने लिए गए Loan पर Floating Interest Rate की तुलना में 2% ज्यादा का Interest Pay करना पड़ेगा।

जबकि दूसरी तरफ, XYZ Limited कंपनी को लगता है कि आगे आने वाले समय में MIBOR Interest Rate 6% से बढ़कर 7% या 8% होने वाला है, जिसके कारण XYZ Limited कंपनी को लगता है कि उसे आगे आने वाले समय में अपने लिए गए Loan पर 8% + 4% = 12% के Interest Rate से Interest Pay करना पड़ेगा। जबकि Fix Interest Rate 10% ही है। इसका मतलब है कि XYZ Limited कंपनी के According उसे आगे आने वाले समय में अपने लिए गए Loan पर Fix Interest Rate की तुलना में 2% ज्यादा का Interest Pay करना पड़ेगा।

दोस्तों, मैं आपको बताना चाहता हूँ कि यहाँ पर ABC Limited कंपनी और XYZ Limited कंपनी दोनों को ही यह फिक्स पक्का पता नहीं है कि आने वाले समय में MIBOR Interest Rate घटेगी या बढ़ेगी। वह बस अपने Analysis के आधार पर इसका एक अनुमान लगा रहे हैं।

तो दोस्तों, ऐसी Situation में ABC Limited नाम की कंपनी और XYZ Limited नाम की कंपनी एक Fix Time Period के लिए और एक Fix Amount पर आपस में एक Contract साइन कर सकते हैं, जिसमें आने वाले समय में ABC Limited नाम की कंपनी अपने लिए गए 20 करोड़ रुपयों के Loan पर Floating Interest Rate के आधार पर Interest Pay करेगी, और XYZ Limited नाम की कंपनी अपने लिए गए 20 करोड़ रुपयों के Loan पर Fix Interest Rate के आधार पर Interest Pay करेगी। इसका मतलब है कि यहां पर ABC Limited कंपनी और XYZ Limited कंपनी ने आपस में एक Fix Time Period के लिए और एक Fix Amount पर अपने Interest Pay करने के तरीके को Exchange कर लिया है, बदल लिया है।

दोस्तों, इस तरह से दो कंपनियों के बीच Cash Flow और Liabilities की अदला-बदली को ही हम Swap Contract कहते हैं।

दोस्तों, मान लेते हैं कि Contract साइन करने के बाद आने वाले समय में MIBOR Interest Rate 6% से घटकर 4% हो जाता है, तो इस Situation में ABC Limited कंपनी को अपने लिए गए Loan पर 2% कम Interest Pay करना पड़ेगा, जबकि XYZ Limited कंपनी को अपने लिए गए Loan पर 10% के Fix Interest Rate से ही Interest Pay करना पड़ेगा।

दोस्तों, मैं आपको बताना चाहता हूँ कि दोनों कंपनियों को अपने Banks में उसी Interest Rate पर Interest Pay करना होगा जिस Interest Rate पर उन्होंने अपने Banks से Loan लिया था। जैसे कि ABC Limited कंपनी को 10% के Fix Interest Rate से ही अपने Bank में Interest Pay करना होगा, और XYZ Limited कंपनी को MIBOR + 4% Risk Premium के Floating Interest Rate से ही अपने Bank में Interest Pay करना होगा। क्योंकि दोस्तों, यह Contract केवल दोनों कंपनियों के बीच हुआ है, ना कि दोनों बैंकों के बीच।

तो दोस्तों, ऊपर दिए गए Example के According ABC Limited कंपनी 10% के Fix Interest Rate से ही अपने Bank में Interest Pay करेगी, और XYZ Limited कंपनी MIBOR + 4% Risk Premium के Floating Interest Rate पर ही अपने Bank में Interest Pay करेगी। क्योंकि दोस्तों, जो कंपनी Contract के मुताबिक जितने ज्यादा प्रतिशत का Interest अपने Bank में Pay करती है, उसे सामने वाली कंपनी उतने प्रतिशत Interest के पैसे अलग से देती है।

ऊपर दिए गए Example के According XYZ Limited कंपनी अपने Bank में MIBOR + 4% Risk Premium, मतलब की 4% + 4% =  8% के Floating Interest Rate पर ही अपने Bank में Interest Pay करेगी, जबकि Contract के मुताबिक उसे 10% के Fix Interest Rate पर Interest Pay करना था। 

तो यहां पर XYZ Limited कंपनी 20 करोड़ रुपयों के Loan पर 2% के Interest Rate के हिसाब से जो ऊपर का पैसा बनता है, वह ABC Limited कंपनी को अलग से दे देती है। जिसके कारण ABC Limited कंपनी का Interest Rate घटकर 10% – 2% = 8% हो जाता है और XYZ Limited कंपनी का Interest Rate बढ़कर 8% + 2% = 10% हो जाता है। तो दोस्तों, इस तरह से दोनों कंपनियों के बीच एक Swap Contract का Settlement होता है।

दोस्तों, यह एक Interest Rate Swap Contract का Example था। मुझे आशा है कि आपको इस Example के माध्यम से समझ में आ गया होगा कि Swap Contract क्या होता है, यह कैसे काम करता है और इसका Settlement कैसे होता है।

2. Swap Contract कितने Types के होते हैं ?

दोस्तों, ज्यादातर इस्तेमाल किए जाने वाले Swap Contract सात Types के होते हैं, पर इनमें भी दो Swap Contract को सबसे ज्यादा USE किया जाता है, जो कि नीचे दिए गए हैं।

1. Interest Rate Swap

2. Currency Swap

3. Commodity Swap

4. Credit Default Swap

5. Inflation Swap

6. Subordinated Risk Swap

7. Equity Swap

इनमें सबसे ज्यादा उपयोग किए जाने वाले Swap Contract हैं।

1. Interest Rate Swap

2. Credit Default Swap

आगे आने वाले Articles में हम इन सभी Swap Contracts के बारे में एक-एक करके Details में जानेंगे।

3. Swap Contract में कौन Trade करता है ?

Swap Contract में Companies, Businesses, और Institutions अपने जोखिम को कम करने के लिए आपस में एक दूसरे के साथ Trade करते हैं, और Banks और Financial Institutions कुछ मामलों में इनके बीच एक Mediator के रूप में काम करते हैं, जिसके बदले में वह उनसे कुछ Amount Fees के रूप में भी Charge करते हैं।

दोस्तों, मैं आपको बताना चाहता हूँ कि Swap Contract में Retail Investors आमतौर पर भाग नहीं लेते हैं।

4. Swap Contract के क्या Advantages होते हैं ?

Swap Contract के काफी Advantages होते है जो कि निचे दिए गए है।

Less Expensive 

Swap Contract करना आमतौर पर ज्यादा Expensive नहीं होता है क्योंकि Swap Contract में ना तो कोई Upfront Premium लगता है और ना ही कोई Transaction Cost होती है।

Hedging Risk 

Swap Contract के माध्यम से Companies, Businesses, और Institutions अपने Risk को Hedge कर सकते हैं, मतलब कि अपने जोखिम को कम कर सकते हैं।

Customizable

Swap Contract, Forward Contract की तरह ही Customizable होते हैं। मतलब कि Swap Contract को दो कंपनियाँ अपनी जरूरत के हिसाब से आपस में Customize कर सकती हैं।

Long Term Benefits

Swap Contract को Future And Option Contract की तुलना में ज्यादा लम्बे समय के लिए किया जा सकता है, जैसे कि Future And Option Contracts को कुछ महीनों के लिए किया जा सकता हैं, जबकि Swap Contract को एक साल, दो साल या उससे भी अधिक लंबे समय के लिए किया जा सकता है।

Informational Advantage

Swap Contract दो कंपनियों के बीच आपसी सहमति से किया जाता है, इसलिए इसमें कंपनियों की Personal Information भी आपस में Secure रहती है।

Right Position of company

Swap Contract में, कंपनियों को अपनी Liabilities और Revenue के बीच होने वाले असंतुलन (Mismatch) का भी पता चलता है, जिसके कारण कंपनियों को अपनी सही स्थिति का आकलन करने में मदद मिलती है।

5. Swap Contract के क्या Disadvantages होते हैं ?

Swap Contract के तीन मुख्य Disadvantages होते है जो कि निचे दिए गए है।

Default Risk

Default Risk का मतलब होता है कि जिसमें कोई पार्टी Contract में तय की गई शर्तो के आधार पर Interest Rates, Currency Rates, Commodity Prices, Inflation Rates या अन्य किसी भी संपत्ति या परिसंपत्ति की Delivery या Payment करने से इंकार कर देती है। या फिर यह भी हो सकता है कि Contract करने के बाद आगे आने वाले समय में दोनों पार्टियों में से कोई एक पार्टी Contract में तय की गई शर्तो के अनुसार Contract को पूरा करने में सक्षम ही ना हो। 

तो ऐसी स्थिति में, दोनों पार्टियों को कोर्ट जाना पड़ सकता है, जिससे इस स्थिति का कोई तत्काल समाधान नहीं निकल सकता है, जिसके कारण दोनों पार्टियों को इसमें भारी नुकसान का सामना भी करना पड़ सकता है।

तो दोस्तों, इस तरह से Swap Contract में Default Risk होने की संभावना बनी रहती है।

Lack of Liquidity

Swap Contract दो कंपनियों के बीच आपसी सहमति से किया जाता है। इसलिए, इसमें Liquidity का जोखिम भी बना रहता है।

Swap Contract में ज्यादातर समय Counterparty को, मतलब कि सामने वाली Party को खोजना और उसे लंबे समय तक उस Contract में बनाए रखना काफी मुश्किल होता है। जिसके कारण Swap Contract में Liquidity की कमी रहती है।

Regulatory Risk

Swap Contract एक प्रकार का OTC (Over-The-Counter) Derivative Contract होता है जो दो कंपनियों के बीच आपसी सहमति से किया जाता है। इसमें कोई Mediator नहीं होता है, यानी कि दोनों कंपनियों के बीच में Contract को Execute कराने और विवादों को सुलझाने के लिए कोई तीसरा पक्ष Mediator के रूप में नहीं होता है। जैसे कि कोई Broker, Exchange या कोई Regulatory या Authority Body जो इसे Operate करती हो। इसलिए, इसमें Default Risk और Regulatory Risk होने की संभावना बनी रहती है।

दोस्तों, केवल कुछ मामलों में ही Banks और Financial Institutions Swap Contract में एक Mediator के रूप में काम करते हैं। अन्यथा, Swap Contract दो पार्टियों के बीच बिना किसी Mediator के आपसी सहमति से ही किए जाते हैं।

Important Points

  • Swap Contract एक प्रकार का Over-The-Counter (OTC) Derivative Contract होता है, जिसमें दो पार्टियां आपस में एक दूसरे के साथ Fix और Floating Interest Rate को एक्सचेंज करती हैं।
  • Fix Interest Rate का मतलब होता है कि जिस Interest Rate पर Bank ने कंपनी को Loan दिया है, वह हमेशा फिक्स ही रहेगा। बैंक उसे Loan के Time Period के बीच में कम या ज्यादा नहीं कर सकता है।
  • Floating Interest Rate का मतलब होता है कि जो बाजार की स्थितियों के अनुसार हमेशा बदलता रहता है, Change होता रहता है। उसे हम Floating Interest Rate कहते हैं।
  • Swap Contract का उपयोग Financial Risk (वित्तीय जोखिम) को कम करने और Profit कमाने के लिए किया जाता है, जैसे कि Interest Rate के जोखिम को कम करना, Income  Generat करना या Loan का निपटारा करना आदि।
  • अगर कोई कंपनी Fix Interest Rate पर Loan लेती है, तो वह Swap Contract के माध्यम से Floating Interest Rate का उपयोग भी कर सकती है। ठीक इसी प्रकार, अगर कोई कंपनी Floating Interest Rate पर Loan लेती है, तो वह Swap Contract के माध्यम से Fix Interest Rate का उपयोग भी कर सकती है।
  • MIBOR का अर्थ होता है कि भारत में जिस ब्याज दर पर बैंक आपस में एक दूसरे को ऋण देते हैं, उसे हम MIBOR (Mumbai Interbank Offer Rate) कहते हैं।
  • और LIBOR का अर्थ होता है कि यूरोप में बैंक्स जिस ब्याज दर पर आपस में एक दूसरे को ऋण देते हैं, उसे हम LIBOR (London Interbank Offer Rate) कहते हैं।
  • MIBOR और LIBOR दोनों ही Floating Interest Rate होती हैं जो बाजार की स्थितियों, जैसे कि ब्याज दरों में परिवर्तन, आर्थिक विकास, मुद्रास्फीति, विदेशी मुद्रा बाजार और राजनीतिक अस्थिरता आदि के आधार पर बदलती रहती हैं।
  • MIBOR और LIBOR Interest Rate के आधार पर ही बैंकों द्वारा Floating Interest Rate पर दिए जाने वाले Loan की ब्याज दरों को निर्धारित किया जाता है। जैसे कि अगर MIBOR Interest Rate 7% है, तो बैंक्स अपने Loan की Interest Rate को MIBOR + 2% Risk Premium या MIBOR + 3% Risk Premium के रूप में निर्धारित कर सकते हैं। इसका मतलब है कि उस बैंक की Floating Interest Rate 7% + 2% = 9% होगी।
  • MIBOR और LIBOR Interest Rate के घटने-बढ़ने पर, बैंकों द्वारा Floating Interest Rate पर दिए जाने वाले Loan की Interest Rate भी घटती-बढ़ती रहती है।
  • बैंको द्वारा Fix Interest Rate को निर्धारित करने के लिए, MIBOR के साथ और भी बहुत सारी चीजों का ध्यान रखा जाता है, जैसे कि Inflation, Economic Growth, और Market Risk इत्यादि।

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So I Hope कि आपको समझ में आ गया होगा कि Swap Contract क्या होता है ? तो आपको Swap Contract पर हमारा यह Article कैसा लगा, निचे Comments करके जरूर बताइयेगा।

धन्यवाद ।। ”

 

 

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