Business Words

Fundamental Analysis क्या होता है ?
  1. किसी भी स्टॉक, कंपनी, प्रॉपर्टी, कमोडिटी या बिजनेस में अपने पैसे निवेश करने से पहले हम जो रिसर्च करते हैं, उसे ही Fundamental Analysis कहा जाता है।
  2. अगर आसान शब्दों में कहा जाए, तो हम कह सकते हैं कि एक स्टॉक, कंपनी, प्रॉपर्टी, कमोडिटी, या बिजनेस की वास्तविक कीमत (intrinsic value) को पता करने के लिए हम जो उनके बारे में Research या Analysis करते हैं, उसे ही उनका Fundamental Analysis कहा जाता है।
  3. दोस्तों, Fundamental Analysis की मदद से ही हमें एक स्टॉक, कंपनी, प्रॉपर्टी, कमोडिटी, या बिजनेस की वास्तविक कीमत (Intrinsic value) का पता चलता है।
  4. Fundamental Analysis दो प्रकार के होते हैं: Qualitative Analysis (गुणात्मक विश्लेषण) और Quantitative Analysis (मात्रात्मक विश्लेषण)।
  5. Qualitative Analysis का मतलब होता है कि एक कंपनी का उसकी Quality (गुणवत्ता) के आधार पर Analysis करना, जैसे कि कंपनी के Promoters कौन हैं ?, कंपनी का Past और Present Performance कैसा है ?, कंपनी का Management कैसा है ?, और कंपनी कौन-कौन से Products बनाती और बेचती है ? आदि, सभी चीजों की जानकारी जुटाना ही उस कंपनी का Qualitative Analysis कहलाता है।
  6. Quantitative Analysis का मतलब होता है कि एक कंपनी का उसके Financial Data (वित्तीय आंकड़ों) के आधार पर Analysis करना, जैसे कि कंपनी कि Annual Report, Balance Sheet, Profit & Loss Statement, Cash Flow Statement, और Financial Ratios के आधार पर किया गया Analysis ही उस कंपनी का Quantitative Analysis कहलाता है।
  7. Intrinsic value एक कंपनी, स्टॉक, या व्यवसाय की वास्तविक कीमत (Actual value) होती है, जो उनकी Market value की तरह हर दिन Demand और Supply के आधार पर बदलती नहीं रहती है।
  8. Overvalued का मतलब होता है कि एक कंपनी के शेयर्स Market में अपनी वास्तविक कीमत से ज्यादा Price पर Trade कर रहे हैं, और Undervalued का मतलब होता है कि उस कम्पनी के शेयर्स Market में अपनी वास्तविक कीमत से कम Price पर Trade कर रहे हैं।
  9. Fundamental Analysis की Help से हम ऐसी कंपनियों में अपने पैसे निवेश कर पाते हैं, जो Actual में अच्छी होती हैं, और जो खराब कंपनियां होती है, उनमें अपने पैसे निवेश करने से बच जाते हैं।
  10. दोस्तों, Fundamental Analysis की मदद से हम एक अच्छी कंपनी और एक खराब कंपनी के बीच के अंतर को जान सकते हैं।
Technical एनालिसिस क्या होता है ?
  1. Technical Analysis का मतलब होता है कि किसी भी स्टॉक, कमोडिटी, या करेंसी के Past Data (मुख्य रूप से कीमतों) और Current Price (वर्तमान मूल्य) और वॉल्यूम के आधार पर उनकी Future Price को Predict करना, उसका एक अनुमान लगाना, Technical Analysis कहलाता है। 
  2. Technical Analysis तीन मुख्य Principles (सिद्धांतों) और तीन मुख्य Assumptions (मान्यताओं) के आधार पर काम करता है, जैसे कि Market Action Discounts Everything, Stocks Prices Move In Trends, और History Tends To Repeat Itself आदि।
  3. Market Action Discounts Everything इस Assumption का मतलब होता है कि एक Stock, Commodity और Currency की Prices (कीमतों) में उन Stock, Commodity और Currency से संबंधित सभी Important Fundamental जानकारी पहले से ही शामिल होती है। जैसे कि News, Events, और अन्य वित्तीय आंकड़ों से संबंधित जानकारी।
  4. Stocks Prices Move In Trends इस Assumption का मतलब होता है कि बाजार में प्रत्येक Stock, Commodity, और Currency की Prices एक Trend में Move करती हैं।
  5. History Tends To Repeat Itself इस Assumption का मतलब होता है कि Market में History अपने आप को Repeat करती है, वो चाहे स्टॉक मार्केट हो, कमोडिटी मार्केट हो, या करेंसी मार्केट हो। एक Particular Situation में सभी Markets में History अपने आप को Repeat करती है
  6. Market में तीन प्रकार के Trends होते हैं जैसे कि Up Trend, Down Trend और Sideways Trend आदि।
  7. Up Trend का मतलब होता है कि इस ट्रेंड में Stock, Commodity, और Currency की Prices एक पैटर्न या ट्रेंड में बढ़ती रहती हैं। जिसे हम ‘Up Trend’ कहते हैं
  8. Down Trend का मतलब होता है कि इस ट्रेंड में Stock, Commodity, और Currency की Prices एक पैटर्न या ट्रेंड में घटती रहती हैं। जिसे हम ‘Down Trend’ कहते हैं
  9. Sideways Trend का मतलब होता है कि इस ट्रेंड में Stock, Commodity, और Currency की Prices एक Fixed Range में एक बॉक्स में घूमती रहती हैं। जिसे हम ‘Sideways Trend’ कहते हैं
  10. Technical Analysis का मुख्य उद्देश्य एक Stock, Commodity, और Currency की Future Prices की Direction को Predict करना है, उसका एक अनुमान लगाना है कि आगे आने वाले समय में उस Stock, Commodity, और Currency की Prices किस Direction में Move करेंगी।
Annual Report क्या होती है ?
  1. Annual Report या वार्षिक रिपोर्ट एक कंपनी, व्यवसाय, संगठन, या संस्था का महत्वपूर्ण फाइनेंसियल डॉक्यूमेंट होता है जिसमें उनके बिज़नेस से सम्बन्धित सभी गतिविधियों की जानकारी दी जाती है। जैसे कि कंपनी के वित्तीय डेटा, कम्पनी के कार्यों, परियोजनाओं, निवेश, लक्ष्य या मिशन, उत्पादों, बाजार में हो रही गतिविधियों, रिस्क फैक्टर्स, बाजार साइज, प्रतिस्पर्धा, कम्पनी के कार्य क्षेत्र, मैनेजमेंट, और कम्पनी के भविष्य की योजनाओं सहित अन्य और भी अहम जानकारियां शामिल होती है।
  2. Annual Report के प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य एक कंपनी द्वारा अपने बिज़नेस की मुख्य जानकारियों को अपने शेयरधारकों, निवेशकों, और बाकि अन्य लोगों के साथ साझा करना होता है।
  3. एक कम्पनी का Fundamental Analysis करने के लिए जो महत्वपूर्ण जानकारी होती है, उसका मुख्य स्रोत उस कम्पनी की वार्षिक रिपोर्ट ही होती है।
  4. प्रत्येक कंपनी साल में एक बार अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी करती है, जिसे वह अपने शेयरधारकों और बाकि अन्य लोगों के साथ साझा करती है।
  5. एक कम्पनी की Annual Report में जो मुख्य बिंदु होते हैं, जिसे प्रत्येक शेयरधारक और निवेशक को पढ़ना चाहिए, वह हैं Financial Highlights, Letter to Shareholders, Management Statement, Management Discussion And Analysis, 10 Years Financial Highlights, Directors Report, Corporate Governance, Auditors Report, Financial Statements, Business Overview, Risks Factors And Challenges, Corporate Social Responsibility (CSR), Dividend History, Legal Proceedings, Future Outlook, Market and Industry Analysis, Financial Ratios, Major Customers and Suppliers, Economic Moat, Ownership Structure, Recent Developments, Brand and Reputation, Notice आदि।
  6.  Annual Report प्रत्येक कम्पनी अपने Financial Year के अंत में जारी करती है, जिसमें कंपनी का 1 अप्रैल से लेकर 31 मार्च तक का सम्पूर्ण डेटा होता है। इसमें कंपनी बताती है कि उसने पिछले एक साल में क्या-क्या कार्य किए हैं और कंपनी के पास अपने आने वाले भविष्य को लेकर क्या प्लान्स हैं।
  7. एक कंपनी की Annual Report को कंपनी के व्यापार की मुख्य जानकारियों के साथ सामान्यतः इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि जिससे उस कंपनी के मौजूदा निवेशक, संभावित निवेशक, और अन्य सभी संबंधित लोग कंपनी के बिज़नेस का स्वरूप, उसका वर्तमान घटनाक्रम, और भविष्य के बारे में अच्छे से समझ सके।
  8. एक कंपनी की Annual Report खासतौर पर नए निवेशकों और पुराने शेयरधारकों के लिए छापी जाती है, जो उस कंपनी की सार्वजनिक सूचना और लेनदेन को एक स्थिर और संवादनात्मक तरीके से प्रस्तुत करने का माध्यम होती है। वार्षिक रिपोर्ट स्टॉकहोल्डर्स, निवेशक, सरकार, और अन्य स्टेकहोल्डर्स को कम्पनी के व्यापार के वित्तीय स्वास्थ्य, प्रदर्शन, और कार्यक्रमों के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
Balance Sheet क्या होती है ?
  1. Balance Sheet एक Financial दस्तावेज़ होता है जो किसी कंपनी या संगठन की आर्थिक स्थिति को प्रकट करता है।
  2. बैलेंस शीट को एक निश्चित समय पर तैयार किया जाता है, जो की आमतौर पर एक Financial Year के समापन के समय होता है।
  3. दोस्तों, बैलेंस शीट को Mostly तीन मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है: संपत्ति (Assets), देनदारियाँ (Liabilities), और हिस्सेदारी (Equity)।
  4. Assets में कम्पनी की सभी प्रकार की संपत्ति जैसे कि नकदी, बैंक खाते, और निवेश, का विवरण दिया जाता है।
  5. जबकि Liabilities में कम्पनी के सभी प्रकार के ऋणों का विवरण शामिल होता है, जैसे कि Short Term Liabilities, Long Term Liabilities, क्रेडिट और अन्य वित्तीय कर्ज आदि।
  6. इक्विटी बैलेंस शीट का तीसरा हिस्सा होता है, जो कि कंपनी में Stockholders की हिस्सेदारी को दिखाता है।
  7. “बैलेंस शीट से हमें पता चलता है कि एक कम्पनी के पास कुल कितनी सम्पति है और उस कम्पनी पर कुल कितना कर्ज है।”
  8. बैलेंस शीट का प्रमुख उद्देश्य एक कम्पनी की Financial Situation को संक्षेप में सही से प्रस्तुत करना होता है, ताकि निवेशक और स्टेकहोल्डर्स निवेश से संबंधित निर्णय आसानी से ले सकें।
Profit And Loss Statement क्या होता है ? 
  1. Profit And Loss Statement एक Financial Report होती है जो एक बिज़नेस की आय (Income) और व्यय (Expenses) को दर्शाती है।
  2. प्रॉफिट और लॉस स्टेटमेंट को अलग-अलग समय अवधियों के लिए तैयार किया जाता है, जैसे कि मासिक, तिमाही, और वार्षिक आदि।
  3. प्रॉफिट और लॉस स्टेटमेंट को मोटे तौर पर पांच भागों में बाँटा जा सकता है: आय (Income), व्यय (Expenses), ग्रॉस प्रॉफिट (Gross Profit), नेट प्रॉफिट (Net Profit) और नेट लॉस (Net Loss) आदि।
  4. प्रॉफिट और लॉस स्टेटमेंट को अलग-अलग भागों में इसलिए बाँटा जाता है ताकि एक कंपनी के व्यवसाय की आय (Income), व्यय (Expenses), ग्रॉस प्रॉफिट (Gross Profit), और नेट प्रॉफिट (Net Profit) आदि को सही से दर्शाया जा सके, ताकि निवेशकों को अध्ययन में आसानी हो।
  5. प्रॉफिट और लॉस स्टेटमेंट से हमे एक कम्पनी के व्यवसाय की बहुत सी गतिविधियों (Activities) के बारे में पता चलता है, जैसे कि कम्पनी की सेल्स, प्रोडक्शन, स्टोरेज, इनकम, एक्सपेंसेस, ग्रॉस प्रॉफिट, नेट प्रॉफिट और नेट लॉस्स आदि।
  6. एक कम्पनी के प्रॉफिट और लॉस स्टेटमेंट का उद्देश्य उस कम्पनी के बिज़नेस की Financial Health को सही से मापना और दिखाना होता है।
  7. दोस्तों, प्रॉफिट एंड लॉस स्टेटमेंट हमें एक कम्पनी के किसी खाश समय अवधि  में हुए, वित्तीय लेन-देन की जानकारी देता है। जैसे कि कम्पनी ने Monthly, Quarterly और yearly तौर पर कितनी आय (Income) की, और उस आय को पाने के लिए कम्पनी ने कितना खर्च किया, कितना टेक्स दिया, और कितना मूल्यह्रास (Depreciation) हुआ, और प्रति शेयर कमाई की संख्या (Earning Per Share Number) आदि।
  8. दोस्तों, मैं आपको बता दूँ कि Profit And Loss Statement या P&L statement को Income Statement (इनकम स्टेटमेंट), Statement of Earnings (स्टेटमेंट ऑफ अर्निंग्स), या Statement of Operations (स्टेटमेंट ऑफ ऑपरेशंस) भी कहा जाता है।
Cash Flow Statement क्या होता है ?
  1. Cash Flow Statement एक Financial Report होती है जो एक कंपनी या बिज़नेस के वित्तीय स्वास्थ्य (Financial Health) और नकदी प्रवाह (Cash Flow) की जानकारी हमें प्रदान करती है। जैसे कि कंपनी की वित्तीय स्थिति कैसी है और कंपनी के पास पैसा कहाँ से आता है और वो पैसा कम्पनी कहाँ पर खर्च करती है।
  2. दोस्तों, कैश फ्लो स्टेटमेंट को तीन भागों में बाँटा जा सकता है: जैसे कि परिचालन गतिविधियां (Operating Activities), निवेश गतिविधियां (Investing Activities), और वित्तीय गतिविधियां (Financing Activities) आदि।
  3. Operating Activities में कम्पनी के व्यवसायिक कार्यों से जुड़े हुए दिन-प्रतिदिन के काम शामिल होते हैं, जैसे कि सेल्स (बिक्री), उत्पादन, वित्तीय लेन-देन, मार्केटिंग, वेतन, टेक्नोलॉजी, कर, संसाधन नियुक्ति, और काम के लिए मशीनों को या लोगों को लाना आदि शामिल होता है।
  4. Investing Activities में कम्पनी की निवेश संबंधित गतिविधियां शामिल होती हैं, जैसे कि ज़मीन या प्रॉपर्टी खरीदना, स्टॉक्स में निवेश करना, पुरानी संपत्ति को बेचना, मशीनों या इन्टैंजिबल एसेट में निवेश करना आदि शामिल होता है।
  5. Financing Activities में कम्पनी के वित्तीय (Financial) गतिविधियों से संबंधित कामकाज आते हैं, जैसे कि डिविडेंड बांटना, लोन का पैसा चुकाना या लोन के पैसे का ब्याज अदा करना, शेयरों की खरीदारी करना, कॉरपोरेट बॉंड्स जारी करना और निवेशकों से पैसे जुटाना आदि शामिल होता है।
  6. कैश फ्लो स्टेटमेंट एक कम्पनी के व्यवसाय से जुड़ा एक महत्वपूर्ण Financial दस्तावेज़ होता है जो उस कम्पनी और निवेशकों को वित्त (Finance) संबंधित निर्णयों को लेने में मदद करता है।
  7. कैश फ्लो स्टेटमेंट से हमें एक कम्पनी या व्यवसाय के कारोबार की सही स्थिति का आंकलन करने में मदद मिलती है।
  8. दोस्तों, कैश फ्लो स्टेटमेंट का मुख्य उद्देश्य हमें एक कंपनी, व्यवसाय, या व्यक्ति के नकदी प्राप्ति (Cash Inflows), नकदी व्यय (Cash Outflows), और नकदी संशोधन (Cash Adjustments) आदि की जानकारी देना होता है।
Market Capitalization और Free Float Market Capitalization क्या होते हैं ?
  1. Market Capitalization का मतलब होता है कि Present Time में एक कंपनी की Market में Total Value क्या है, मतलब की दोस्तों, Market Capitalization मौजूदा समय में एक कंपनी की Total Market Value को दर्शाता है।
  2. अगर आसान शब्दों में कहा जाए, तो हम कह सकते हैं कि एक कंपनी के Total Number Of Outstanding Shares की Total Market Value को हम उस कंपनी का Market Capitalization कहते हैं।
  3. Free Float Market Capitalization का मतलब एक कंपनी के Freely Tradable शेयर्स की Total Market Value से होता है। मतलब की एक कंपनी के ऐसे शेयर्स जिन पर किसी प्रकार का कोई Blockage नहीं है, जिनको Freely Market में खरीदा और बेचा जाता है, ऐसे शेयर्स की Total Market Value को हम उस कंपनी का Free Float Market Capitalization कहते हैं।
  4. अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो हम कह सकते हैं कि एक कंपनी के Blocked शेयर्स को छोड़कर उस कंपनी के Freely Tradable शेयरों की Total Market Value को उस कंपनी का Free Float Market Capitalization कहते है।
  5. एक कम्पनी का Market Capitalization कैलकुलेट करने का फार्मूला होता है: Market Capitalization = Total Number Of  Outstanding Shares × Share Current Market Price
  6. और एक कम्पनी का Free Float Market Capitalization कैलकुलेट करने का फार्मूला होता है: Free Float Market Capitalization = Freely Tradable Shares ×  Share Current Market Price
  7. Market Capitalization के आधार पर कम्पनियों को कई भागो में बांटा गया है, जैसे कि Large Cap, Mid  Cap, Small Cap, Giga cap, Mega Cap, Micro Cap, और Nano Cap आदि।
  8. Market Capitalization के आधार पर Large Cap कंपनियाँ वो कंपनियाँ होती हैं जिनका Market Cap 20,000 करोड़ रुपये या उससे अधिक का होता है। ऐसी कंपनियों को हम Large Cap कंपनियाँ कहा जाता है। और दूसरी तरफ, SEBI (Securities And Exchange Board of India / भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) के अनुसार Market Capitalization के आधार पर देश की Top सबसे बड़ी 100 कंपनियों की List में आने वाली कंपनियों को Large Cap कंपनियाँ कहा जाता है।
  9. Market Capitalization के आधार पर Mid Cap कंपनी उन कंपनियों को कहा जाता है जिनका Market Cap 5,000 करोड़ रुपये से लेकर 19,999 करोड़ रुपये तक का होता है, ऐसी कंपनियों को Mid Cap कंपनियाँ कहा जाता है। और दूसरी तरफ, SEBI (Securities And Exchange Board of India / भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) के अनुसार Market Capitalization के आधार पर देश में Top 101 से लेकर 250 तक की List में आने वाली कंपनियों को Mid Cap कंपनियाँ कहा जाता है।
  10. Market Capitalization के आधार पर Small Cap कंपनी उन कंपनियों को कहा जाता है जिनका Market Cap 5,000 करोड़ रुपये से कम हो, ऐसी कंपनियों को Small Cap कंपनियाँ कहा जाता है। और दूसरी तरफ, SEBI (Securities And Exchange Board of India / भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) के अनुसार Market Capitalization के आधार पर देश में Top 250 कंपनियों की Rank से निचे रहने वाली कंपनियों को Small Cap कंपनियाँ कहा जाता है।
  11. Giga cap  कंपनी उन कंपनियों को कहा जाता हैं जिनका Market Capitalization एक ट्रिलियन डॉलर्स  या उससे अधिक का होता है, उन कंपनियों को हम Giga Cap कंपनियाँ कहते है।
  12. Mega Cap कंपनी उन कंपनियों को कहा जाता हैं जिनका Market Capitalization Large Cap कंपनियों में सबसे ज्यादा होता है, उन कंपनियों को हम Mega Cap कंपनियाँ कहते है।
  13. Micro Cap कंपनियाँ वो कंपनियाँ होती हैं जिनका Market Capitalization Small Cap कंपनियों में बीच (Middle) में होता है, उन कंपनियों को हम Micro Cap कंपनियाँ कहते है।
  14. Nano Cap कंपनी उन कंपनियों को कहा जाता हैं जिनका Market Capitalization Small Cap कंपनियों में सबसे कम होता है, उन कंपनियों को हम Nano Cap कंपनियाँ कहते है।
Enterprise Value क्या होती है ?
  1. Enterprise Value का मतलब होता है कि एक कंपनी के Market Capitalization में, उस कंपनी का Total Debt (कुल ऋण) जोड़कर, फिर उसमें से उस कंपनी का Cash और Cash Equivalents घटाने के बाद जो Value निकल के आती है, उसे हम उस कंपनी का Enterprise Value कहते हैं।
  2. Enterprise Value एक खरीदार के लिए एक कंपनी की वास्तविक कीमत (Actual Value) होती है, मतलब कि जब कोई खरीदार किसी XYZ Limited कंपनी को खरीदता है, तो उसे उसके बदले में सामने वाली पार्टी को Actual में कितने पैसे देने है, यह जानकारी उसे उस कंपनी की Enterprise Value से पता चलती है।
  3. एक कंपनी का Enterprise Value कैलकुलेट करने का फार्मूला होता है: Enterprise Value = Market Capitalization + Total Debt – Cash And Cash Equivalents
  4. Enterprise Value को सही से समझने के लिए आपको कुछ शब्दों की जानकारी होना बहुत जरूरी है, जैसे कि :- Market Capitalization, Total Debt, Cash और  Cash Equivalents आदि।
  5. एक कंपनी के Total Number Of Outstanding Shares की Total Market Value को हम उस कंपनी का Market Capitalization कहते हैं। Market Capitalization Present Time में एक कंपनी की Market में Total Value को दर्शाता है।
  6. Total Debt का मतलब होता है कि एक कंपनी पर कुल कितना कर्ज़ा है।
  7. Cash का मतलब होता है कि एक कंपनी के पास कुल कितना नकद पैसा रखा हुआ है।
  8. Cash Equivalents का मतलब एक कंपनी की Short Term Investments से होता है, जिन्हें बेचकर आसानी से Cash में Convert किया जा सकता है।
  9. जब किसी कंपनी पर Debt उसके Cash और Cash Equivalents से अधिक होता हैं, तो उस कंपनी की Enterprise Value बढ़ जाती है, और जब किसी कंपनी के पास Cash और Cash Equivalents उसके Debt से अधिक होता है, तो उस कंपनी की Enterprise Value उसके Market Capitalization से कम हो जाती है, और जब किसी कंपनी के पास Cash और Cash Equivalents उसके Debt और Market Capitalization से भी ज्यादा होता है, तब उस कंपनी की Enterprise Value नेगेटिव में चली जाती है, मतलब की माइनस में हो जाती है।
  10. जब किसी कंपनी की Enterprise Value उसके Market Capitalization से ज्यादा हो जाती है, तो इसका मतलब होता है कि उस कंपनी पर अत्यधिक कर्ज है।
  11. दोस्तों, जब कभी कोई खरीदार किसी कंपनी को खरीदता है, तो Enterprise Value उसे नुकसान से बचाती है और कई बार Enterprise Value कंपनी के लिए खरीदारों को खोजने में भी मदद करती है।
P/E Ratio क्या होता है ?
  1. PE Ratio का Full Form होता है (Price to Earnings Ratio / मूल्य-आय अनुपात, या कीमत के साथ कमाई अनुपात)
  2. PE Ratio से हमें पता चलता है कि एक कंपनी सालाना तौर पर अपने एक शेयर पर जितने पैसे कमा रही है, हम उस पैसे के बदले उस कंपनी के एक शेयर के लिए कितना गुना पैसा Pay कर रहे हैं या Pay करने के लिए तैयार हैं। मतलब कि दोस्तों, PE Ratio हमें बताता है कि हम कंपनी के EPS (Earnings Per Share / प्रति शेयर आय) के बदले कंपनी के एक शेयर के लिए कितना गुना पैसा दे रहे हैं या देने के लिए तैयार हैं।
  3. अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो हम कह सकते हैं कि PE Ratio से हमें यह पता चलता है कि Current Time में एक कंपनी की Share Price Market में अपने EPS (Earnings Per Share / प्रति शेयर आय) के मुकाबले कितने ज्यादा या कितने कम प्राइस पर ट्रेड कर रही है।
  4. PE Ratio से हमें पता चलता है कि एक कंपनी से 1 रुपया कमाने के लिए हमें उस कंपनी में कितने पैसे Invest करने होंगे। उदाहरण के लिए, यदि किसी कंपनी का PE Ratio 20 है, तो उसका मतलब होता है कि उस कंपनी से 1 रुपया कमाने के लिए हमें उस कंपनी में 20 रुपये Invest करने होंगे।
  5. एक कंपनी का PE Ratio कैलकुलेट करने का फार्मूला होता है: PE Ratio = Share Current Market Price / EPS
  6. PE Ratio तीन प्रकार के होते हैं, जैसे कि Past PE Ratio, Trailing PE Ratio, और Future PE Ratio आदि।
  7. Past PE Ratio का मतलब होता है कि जो एक कंपनी के Last Financial Year के Data के आधार पर Calculate किया जाता है, उसे हम उस कंपनी का “Past PE Ratio” कहते हैं।
  8. Trailing PE Ratio का मतलब होता है कि जो एक कंपनी के Last 12 Months के Data के आधार पर Calculate किया जाता है, उसे हम उस कंपनी का “Trailing PE Ratio” कहते हैं।
  9. Future PE Ratio का मतलब होता है कि जो एक कंपनी के Future Data, जैसे कि EPS (Earnings Per Share / प्रति शेयर आय) और कंपनी की Growth का एक अनुमान लगाकर Calculate किया जाता है, उसे हम उस कंपनी का “Future PE Ratio” कहते हैं।
  10. PE Ratio जितना ज्यादा होता है, वो शेयर उतना ही महंगा होता है, और PE Ratio जितना कम होता है, वो शेयर उतना ही सस्ता होता है।
  11. हमें कभी भी ज्यादा ऊँचे Valuation पर किसी भी कंपनी के शेयर्स को नहीं खरीदना चाहिए, क्योंकि ज्यादातर निवेशक 25 या 30 से अधिक PE Ratio के ऊपर वाले स्टॉक्स को खरीदना पसंद नहीं करते हैं।
  12. किसी कंपनी का PE Ratio कम है या ज्यादा यह जानने के लिए हमेशा Same Sector की दो कम्पनियों के बीच तुलना की जाती है। अगर हम किसी कंपनी के PE Ratio की तुलना किसी दूसरे Sector की कम्पनियों से करते हैं, तो वो गलत है।
  13. अगर किसी कंपनी का PE Ratio पिछले पांच दस साल से एक Stable अनुपात में बढ़ रहा है, तो यह एक कंपनी में निवेश के लिए अच्छा Signal है।
  14. कंपनियाँ कई बार अपने Depreciation को कम दिखाकर अपनी Earnings को ज्यादा दिखा देती हैं, इसलिए हमें किसी भी कंपनी के PE Ratio को देखने के साथ-साथ उस कंपनी के Depreciation पर भी नजर रखनी चाहिए।
  15. Depreciation का मतलब है कि वस्तुओं और चीजों की कीमतों में समय के साथ कमी आना, उन वस्तुओं और चीजों का Depreciation कहलाता है।
  16. अगर किसी कंपनी का PE Ratio High है, तो उसका यह मतलब नहीं है कि वो एक खराब कंपनी है। ठीक इसी प्रकार, अगर किसी कंपनी का PE Ratio Low है, तो उसका भी यह मतलब नहीं है कि वो एक अच्छी कंपनी है।
  17. अगर किसी कंपनी का PE Ratio Zero (0) है, तो इसका मतलब होता है कि वो कंपनी अभी लॉस में है और उसकी कोई Earnings नहीं हैं, इसलिए उस कंपनी का PE Ratio हमें Zero (0) दिखाई दे रहा है।
P/B Ratio क्या होता है ?
  1. PB Ratio का Full Form होता है (Price to Book Value Ratio / मूल्य से बुक मूल्य अनुपात) 
  2. PB (Price to Book Value) Ratio का सम्बंध एक कंपनी के शेयर की Current Market Price और उस कंपनी की Book Value से होता है।
  3. PB Ratio में “P” का मतलब एक कंपनी के शेयर की “Current Market Price” से होता है और “B” का मतलब उस कंपनी की “Book Value” से होता है, मतलब की दोस्तों, PB Ratio एक कंपनी के शेयर की Current Market Price और उस कंपनी की Book Value में Relation को दर्शाता है।
  4. PB Ratio से हमें पता चलता है कि एक कंपनी का शेयर Market में अपनी Book Value से या Assets Value से कितने ज्यादा या कितने कम प्राइस पर ट्रेड कर रहा है। अगर किसी कंपनी का PB (Price to Book Value) Ratio 2 है, तो इसका मतलब होता है कि उस कंपनी का शेयर Market में अपनी Book Value से या Assets Value से 2 गुना प्राइस पर ट्रेड कर रहा है।
  5. PB Ratio की Help से हम एक ही Industry की दो कंपनियों के बीच तुलना करके यह जान सकते हैं कि किस कंपनी का शेयर हमें अपनी Book Value के आधार पर सस्ता मिल रहा है और किस कंपनी का शेयर हमें अपनी Book Value के आधार पर महंगा मिल रहा है।
  6. PB (Price to Book Value) Ratio का Direct सम्बंध एक कंपनी के Tangible Assets से होता है। इसलिए, हमें PB Ratio का उपयोग ऐसी Industries की कंपनियों में करना चाहिए, जिनको अपना Business चलाने के लिए ज्यादा पैसा Hard Assets, मतलब की Tangible Assets, खरीदने में लगाने पड़ते हो। यानी कि ऐसी कंपनियां जो अपने Business को चलाने के लिए Tangible Assets पर अधिक Depend करती हैं। ऐसी कंपनियों में हम Fundamental Analysis के लिए PB Ratio का उपयोग कर सकते हैं। जैसे कि Steel Companies, Power Companies, Manufacturing Companies, Oil Companies, Infra Companies, Chemical Production Companies और Real Estate Companies आदि।
  7. अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो हम कह सकते हैं कि ऐसी कम्पनियाँ जो Branded Products ज्यादा नहीं बेचती हैं, बल्कि Commodity Products को बेचती हैं, ऐसी कंपनियों में हम PB Ratio का उपयोग कर सकते हैं।
  8. PB Ratio का Direct सम्बंध एक कंपनी के Hard Assets, मतलब की Tangible Assets से होता है, तो हमें ऐसी Industries की कंपनियों में PB Ratio का उपयोग Fundamental Analysis के लिए नहीं करना चाहिए, जिन कंपनियों को अपना Business चलाने के लिए ज्यादा Hard Assets, यानि की Tangible Assets की जरूरत नहीं पड़ती है, मतलब की ऐसी कंपनियां जिनको अपना Business चलाने के लिए Tangible Assets की बजाय Intangible Assets की ज्यादा जरूरत पड़ती है, ऐसी कंपनियों में हमें Fundamental Analysis के लिए PB Ratio का उपयोग नहीं करना चाहिए। जैसे कि Technology Companies, Service Companies, Consulting Companies, Software Companies और IT Companies आदि।
  9. अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो हम कह सकते हैं कि ऐसी कंपनियाँ जो Branded Products ज्यादा बेचती हैं, ना की Commodity Products, ऐसी कंपनियों में हमें PB Ratio का उपयोग नहीं करना चाहिए। क्योंकि ऐसी कंपनियों के बारे में हमें PB Ratio से ज्यादा कुछ खास जानकारी का पता नहीं चलता है। इसलिए, हमें ऐसी कंपनियों को PB Ratio के आधार पर Judge नहीं करना चाहिए। 
  10. किसी कंपनी का PB Ratio कम होने का मतलब होता है कि हमे उस कंपनी के शेयर Discount में मिल रहे हैं, यानी कि हमे उस कंपनी के शेयर्स अपनी Book Value या Assets Value से कम कीमत में मिल रहे हैं।
  11. कंपनी का PB Ratio एक से कम होने पर बेहतर माना जाता है, पर ज्यादातर Value Investor PB Ratio को तीन तक भी सही मानते हैं।
  12. अगर किसी कंपनी का PB Ratio एक से कम है, तो इसका मतलब होता है कि उस कंपनी का शेयर Market में अपनी Book Value या Assets Value से कम प्राइस पर ट्रेड कर रहा है। यानी कि उस कंपनी के शेयर की Market Price उस कंपनी की Book Value से कम हो गई है, जो कि बहुत ही Rare Case में होती है। इसलिए ऐसी कंपनियों में PB Ratio के आधार पर Invest करने से पहले आपको ध्यान देना चाहिए कि उस कंपनी के शेयर की प्राइस अपनी Book Value से कम क्यों है, क्या उस कंपनी के बारे में News में कोई गलत खबर आ रही है, जिसके कारण उस कंपनी के शेयर की Price Market में अपनी Book Value से कम कीमत पर ट्रेड कर रही है, या फिर किसी और Reason के कारण उस कंपनी के शेयर की Price Market में अपनी Book Value या Assets Value से कम कीमत पर ट्रेड कर रही है।
Face Value क्या होती है ?
  1. Face Value एक कंपनी के शेयरों की Actual Value होती है Real Value होती है, जो उस कंपनी के Share Certificate पर लिखी होती है।
  2. जब भी कोई कंपनी अपने Business के लिए शुरुआत में IPO के माध्यम से Stock Market से पैसा Raise करना चाहती है, तब उसे Stock Market में List होने से पहले अपनी पूरी कीमत (Total Cost) को शेयर्स में Convert करना पड़ता है। और जब एक कंपनी अपनी पूरी कीमत को शेयर्स में Convert कर लेती है, तो उसके बाद जो मूल्य (Value) कंपनी के एक शेयर का निकलकर आता है, उसे हम उस कंपनी का Face Value कहते हैं।
  3. अगर मैं आपको आसान शब्दों में बताऊं कि Face Value क्या होती है, तो इसे हम ऐसे कह सकते हैं कि Face Value एक कंपनी के शेयरों की वो Value होती है जो एक कंपनी द्वारा पहली बार IPO (Initial Public Offering) के Through Market में अपने शेयर्स को जारी करते समय तय की जाती है।
  4. एक कंपनी की Face Value को कैलकुलेट करने का फार्मूला होता है: Face Value = Equity Share Capital / Total Number Of Outstanding Shares
  5. एक कंपनी अपनी Face Value 1, 2, 4, 8, 10, 50, 100 आदि कुछ भी तय कर सकती है। यह पूरी तरह से उस कंपनी के Owners के हाथ में होता है। लेकिन एक कंपनी SEBI (Securities and Exchange Board of India) के नियमों के अनुसार, अपनी Face Value 1 रूपये से कम नहीं रख सकती है।
  6. Face Value को हम Nominal Value, Par Value, M.R.P और हिंदी में अंकित मूल्य के नाम से भी जानते हैं।
  7. एक कंपनी कई कार्यों के लिए अपनी Face Value का उपयोग करती है, जैसे कि Dividend Payment, Stock Split, और Premium Calculation आदि।
  8. एक कंपनी के शेयर की Face Value का उस कंपनी के शेयर की Market Value से कोई सीधा संबंध नहीं होता है।
  9. Face Value एक कंपनी के शेयरों की नाममात्र की Value होती है, जिसे उस कंपनी द्वारा शुरूआती समय में अपनी संपत्ति को शेयर्स में Convert करते समय तय किया जाता है।
  10. एक कंपनी के शेयरों पर तय किया जाने वाला Premium पूरी तरह से उस कंपनी के Growth, Profits और उस कंपनी के Future Perspectives पर Depend करता है।
  11. ज्यादातर कम्पनियाँ शुरुआत में अपनी Face Value 10 रूपये ही तय करती हैं, ताकि Accounting कैलकुलेशन करने में आसानी हो सके।
  12. एक Investor के लिए एक कंपनी की Face Value का Investing के Point Of View से कोई Important Role नहीं होता है।
  13. एक कंपनी के शेयर्स की Face Value हमेशा Fix रहती है, जब तक कि वो कंपनी अपने स्टॉक्स को Split ना करें।

Revenue क्या होता है ?

  1. Revenue का सम्बन्ध एक कम्पनी की आय, मतलब की Income से होता है।
  2. एक कम्पनी अपने Products और Services को बेचकर Quarterly या Annually तोर पर जितना पैसा कमाती है, उसे हम उस कम्पनी का Revenue कहते है।
  3. अगर आसान शब्दों में कहा जाए, तो हम कह सकते हैं कि Revenue एक कंपनी का वो पैसा होता है जो कंपनी द्वारा अपने Products और Services को बेचकर कमाया है।
  4. एक कम्पनी के Revenue को कैलकुलेट करने का फार्मूला होता है: Revenue = (Price Per Product Or Service) x (Total Number Of Products Or Services Sold) + Additional Income
  5. Revenue एक Financial Metric (मापक) होता है  जो हमें एक कंपनी के उस पैसे की जानकारी देता है  जो कम्पनी अपने Products और Services को बेचकर कमाती है।
  6. Revenue से हमें एक कंपनी की आर्थिक स्थिति का भी पता चलता है।
  7. एक कम्पनी के Revenue को उस कम्पनी की टॉप लाइन भी कहा जाता है क्योंकि यह कम्पनी के Income Statement में सबसे ऊपर लिखा होता है।
  8. जब एक कम्पनी का Revenue अधिक होता है, तब उस कम्पनी का Market Cap भी अधिक होगा, मतलब कि जितना ज्यादा एक कम्पनी का Revenue होगा, उतनी ही ज्यादा Market में उस कम्पनी की value बढ़ेगी।
  9. और जब एक कम्पनी का Revenue कम होता है, तब उस कम्पनी का Market Cap भी कम होगा, मतलब कि जैसे-जैसे एक कम्पनी का Revenue कम होता जाता है, वैसे-वैसे ही उस कम्पनी की Market में वैल्यू कम होती जाती है।
  10. Revenue का उपयोग एक कम्पनी अपने खर्चे Pay करने के लिए भी करती है।
  11. दोस्तों, मैं आपको बता दूँ कि Revenue दो प्रकार के होते हैं – Operating Revenue और Non-Operating Revenue
  12. Operating Revenue और Non-Operating Revenue को छोड़कर भी कुछ अन्य प्रकार के Revenue होते हैं, जैसे कि : Sales Revenue, Investment Revenue, Service Revenue, Royalty Revenue आदि।
  13. एक कम्पनी के Revenue को देखकर हम उस कम्पनी की Financial Health, Growth और उस कम्पनी के Future Prospectives का भी अनुमान लगा सकते हैं, कि आने वाले समय में यह कंपनी Successful होगी या नहीं।
  14. दोस्तों, कम्पनी के Revenue को देखकर एक Investor या Shareholder उस कम्पनी के Business की Financial Stability को भी अच्छे से माप सकता है।

Net Profit क्या होता है ?

  1. एक कंपनी अपने Products और Services को बेचकर जो पैसा कमाती है, उस पैसे में से जब कम्पनी अपने Products और Services की लागत, टैक्स व अन्य अन्य प्रकार के सभी खर्चे निकाल देती है, उसके बाद जो पैसा कम्पनी के पास बचता है उसे हम उस कम्पनी का Net Profit कहते हैं।
  2. अगर आसान शब्दों में कहा जाये तो हम कह सकते हैं कि एक कम्पनी के Revenue से सभी प्रकार के Expenses और टैक्स को निकाल देने के बाद जो Amount कम्पनी के पास बचता है, उसे हम उस कम्पनी का ‘Net Profit’ कहते हैं।
  3. दोस्तों, Net Profit का हिंदी में अर्थ होता है – ‘शुद्ध लाभ’।
  4. एक कम्पनी के Net Profit को देखकर Investors या Shareholders को उस कम्पनी के बारे में यह आंकलन करने में मदद मिलती है कि  क्या वो कम्पनी अपने Products और Services को बेचकर उचित Profit कमा पा रही है या नहीं।
  5. Net Profit का मतलब एक कम्पनी के वास्तविक लाभ से होता है।
  6. एक कम्पनी के Net Profit को कैलकुलेट करने का फार्मूला होता है: Net Profit = Total Income – Total Expenses
  7. दोस्तों, मैं आपको बता दूँ कि Net Profit को Profit After Tax, Actual Profit, Clear Profit, शुद्ध लाभ या वास्तविक लाभ जैसे नामों से भी जाना जाता है।
  8. अगर कोई कम्पनी हर साल अपने Net Profit को बढ़ा रही है, तो Investment के दृष्टिकोण से वो एक अच्छी कंपनी हो सकती है।
  9. और अगर किसी कंपनी का Net Profit साल दर साल कम होता जा रहा है, तो Investment के लिहाज से उसे एक अच्छी कंपनी नहीं माना जाता है।
  10. एक कम्पनी का Net Profit हमें यह बताता है कि वो कम्पनी Profitable है या नहीं, और अगर वो कम्पनी Profitable है तो वो कितनी Profitable है।
  11. Net Profit को एक कम्पनी की Bottom Line भी कहा जाता है क्योंकि Net Profit प्रत्येक कम्पनी के Income Statement में सबसे निचे लिखा होता है।
  12. एक कम्पनी का Net Profit कभी फिक्स नहीं रहता, वो Situations के आधार पर हमेंशा बदलता रहता है।
  13. Net Profit एक Accounting Figure होता है जिसे कम्पनी के Management द्वारा आसानी से Manipulate किया जा सकता है, इसलिए हमें एक कम्पनी में Invest करने से पहले उस कम्पनी के अन्य सभी Factors को अच्छे से देखना चाहिए।
  14. हमें एक कंपनी में कभी भी केवल उसके Net Profit के आधार पर अपने पैसे Invest नहीं करने चाहिए, उसके साथ साथ हमें उस कंपनी के अन्य सभी Financial Factors को भी ध्यान से देखना चाहिए, उसके बाद ही हमें उस कंपनी में अपने पैसे Invest करना चाहिए।
EBITDA क्या होता हैं ?
  1. EBITDA की Full Form होती है Earning Before Interest Tax Depreciation And Amortization.
  2. EBITDA का मतलब एक कम्पनी के उस प्रॉफिट से होता है, जिसमे से कम्पनी ने अभी तक अपने Interest, Tax, Depreciation और Amortization की Cost को नहीं घटाया है।
  3. अगर आसान शब्दों में कहा जाए, तो हम कह सकते हैं कि EBITDA एक कंपनी का Interest, Tax, Depreciation और Amortization की Cost को घटाने से पहले का प्रॉफिट होता है।
  4. और अगर दोस्तों मैं आपको दूसरे शब्दों में बताऊं कि EBITDA क्या होता है, तो इसे हम ऐसे कह सकते हैं कि एक कंपनी के Revenue में से उस कम्पनी का Total Operating Expense निकलने के बाद जो Amount कम्पनी के पास बचती है, उसे हम उस कम्पनी का EBITDA कहते हैं।
  5. एक कम्पनी का EBITDA कैलकुलेट करने का फार्मूला होता है ; EBITDA = Net Income + Interest + Tax + Depreciation + Amortization
  6. EBITDA का उपयोग Stock Market में अच्छी Quality वाले Stocks को चुनने में किया जाता है।
  7. EBITDA एक Financial Ratio होता है, जिसकी हेल्प से हमे पता चलता है कि क्या एक कम्पनी अपने लिए हुए Debt (कर्ज) के पैसों को Interest के साथ चुकाने में सक्षम है या नहीं।
  8. दोस्तों, EBITDA से हमे एक कम्पनी की Actual Earnings का पता नहीं चलता है।
  9. बाजार में कुछ कंपनियाँ EBITDA का उपयोग अपने गलत Financial Decisions को और कम्पनी में Finance से संबंधित हुई कमियों को छुपाने के लिए भी करती हैं।
  10. EBITDA एक कंपनी की Growth और उस कंपनी के Operational Model की Effectiveness का एक भरोसेमंद (Reliable) अवलोकन करने में हमारी मदद करता है।
  11. EBITDA एक कम्पनी के केवल उन Expenses का हिसाब रखता है जो उस कंपनी के Daily (Day To Day) Operations को चलाने के लिए आवश्यक होते हैं।
  12. EBITDA का उपयोग हम समान सेक्टर वाली दो कम्पनियों के बीच Financial Efficiency को Compare करने के लिए भी कर सकते है।
  13. EBITDA हमें एक कम्पनी के Income Statement में देखने को मिलता है।
  14. शेयर बाजार में एक कंपनी को सही से Value करने के लिए हमें उस कम्पनी के EBITDA का उपयोग, उस कम्पनी के बाकि अन्य Financial Metrics के साथ करना चाहिए।
EBIT क्या होता है ?
  1. EBIT का Full Form होता है Earning Before Interest And Taxes.
  2. EBIT का मतलब एक कम्पनी के उस प्रॉफिट से होता है, जिसमें से कम्पनी ने अभी तक अपने Interest और Tax की Cost को नहीं घटाया है।
  3. अगर आसान शब्दों में कहा जाए, तो हम कह सकते हैं कि EBIT एक कंपनी का Interest और Taxs की Cost को Pay करने से पहले का प्रॉफिट होता है।
  4. और अगर दोस्तों दूसरे शब्दों में कहा जाये कि EBIT क्या होता है, तो इसे हम ऐसे कह सकते हैं कि एक कंपनी के Revenue में से उस कम्पनी का Total Operating Expense, Depreciation और Amortization की Cost को निकाल लेने के बाद जो Amount कम्पनी के पास बचती है, उसे हम उस कम्पनी का EBIT कहते हैं।
  5. एक कंपनी का EBIT कैलकुलेट करने का फार्मूला होता है ; EBIT = Net Profit + Interest + Tax
  6. EBIT का उपयोग एक कम्पनी की Operating Income को Measure करने के लिए किया जाता है।
  7. दोस्तों, EBIT से हमें एक कंपनी की वास्तविक कमाई की जानकारी नहीं मिलती है।
  8. EBIT का उपयोग हम समान सेक्टर वाली दो कम्पनियों के बीच Financial Efficiency को Compare करने के लिए भी कर सकते है।
  9. EBIT से हमें एक कंपनी की Interest और Tax Pay करने से पहले की कमाई के बारे में पता चलता है।
  10. दोस्तों, EBIT मतलब की (Earning Before Interest And Tax) को हम PBIT मतलब की (Profit Before Interest and Tax) के नाम से भी जानते हैं।
  11. एक कम्पनी के EBIT और EBITDA को Compare करने पर हमें पता चलता है कि उस कम्पनी का कितना प्रॉफिट Depreciation और Amortization में चला जाता है।
  12. EBIT एक Financial Metric होता है, जिसकी Help से हमे यह भी पता चलता है कि एक कम्पनी अपने लिए हुए Debt (कर्ज) का Interest चुकाने में सक्षम है या नहीं।
  13. दोस्तों, मैं आपको बता दूँ कि Mostly Service Industries की कंपनियों का Analysis करने के लिए ही EBIT का उपयोग किया जाता है।
  14. EBIT हमें एक कम्पनी के Income Statement में देखने को मिलता है।
  15. बाजार में एक कम्पनी को सही से मूल्यांकित करने के लिए हमें उस कम्पनी के EBIT का उपयोग उस कम्पनी के बाकी Financial Metrics के साथ करना चाहिए।
Tangible और Intangible Assets क्या होते हैं ?
  1. Tangible Assets का मतलब होता है कि ऐसे Assets जिनको हम हाथ से छू सकते हैं और आँखों से देख सकते हैं, यानी की ऐसे Assets जिनका एक भौतिक रूप होता है जिनको हम Touch And Feel कर सकते है, ऐसे Assets को हम Tangible Assets कहते हैं। जैसे कि PlantsBuildings, Equipment, Land, Machinery, Inventory, Furniture, Vehicles आदि।
  2. अगर मैं आपको दूसरे शब्दों में बताऊ कि Tangible Assets क्या होते है, तो इसे हम ऐसे कह सकते हैं कि एक कंपनी के ऐसे Assets जिनका हम Accounting (गणना) के तोर पर एक Exact Value लगा सकते है, एक Exact कीमत लगा सकते है, उन Assets को हम Tangible Assets कहते हैं।
  3. अक्सर कंपनी के पास जो Cash रखा हुआ होता है, उसे और कंपनी की कहीं पर कोई Investment की गई हो, जैसे कि स्टॉक्स या बांड्स में, तो उसे भी कई बार कंपनी के Tangible Assets की List में शामिल कर लिया जाता है। लेकिन मैं आपको बता दूँ कि Cash और Investment कंपनी के Tangible Assets की Category में नहीं आते हैं, वो कंपनी के Financial Assets की Category में आते हैं।
  4. Intangible Assets का मतलब होता है कि ऐसे Assets जिनको हम हाथ से छू नहीं सकते और ना ही आँखों से देख सकते हैं, यानी की ऐसे Assets जिनका कोई भौतिक रूप नहीं होता है जिनको हम Touch And Feel नहीं कर सकते है, ऐसे Assets को हम Intangible Assets कहते हैं। जैसे कि Goodwill, Brand Recognition, Copyrights, Trade Names, Patents, Trademarks, Customer Lists, Technology, Leadership, Strategy, Software Licenses, Logo आदि।
  5. अगर मैं आपको दूसरे शब्दों में बताऊ कि Intangible Assets क्या होते है, तो इसे हम ऐसे कह सकते हैं कि एक कंपनी के ऐसे Assets जिनका हम Accounting (गणना) के तोर पर कोई एक Exact कीमत नहीं लगा सकते है, उन Assets को हम Intangible Assets कहते हैं।
  6. एक कंपनी के Employees को भी Accounting के हिसाब से Intangible Assets की List में गिना जाता है, ना कि Tangible Assets की List में।
Appreciating और Depreciating Assets क्या होते हैं ?
  1. Appreciating Assets का मतलब होता है कि ऐसे Assets जिनको खरीदने के बाद Time के साथ-साथ उनकी कीमत बढ़ती जाती है ऐसे Assets को हम Appreciating Asset कहते हैं। जैसे कि Land, Real Estate, Stocks, Mutual Funds, Fixed Deposits, ETF, PPF (Public Provident Fund), Gold आदि।
  2. Depreciating Assets का मतलब होता है कि ऐसे Assets जिनको खरीदने के बाद Time के साथ-साथ उनकी कीमत घटती जाती है, कम होती जाती है ऐसे Assets को हम Depreciating Assets कहते हैं। जैसे कि Machines, Vehicles, Office Buildings, Furniture, Computers आदि।