Forward Contract क्या होता है ?

Forward Contract क्या होता है ?

नमस्कार दोस्तों, Bazaareducation में आपका स्वागत है। आज हम इस Article में Forward Contract क्या होता है ? इस बारे में Complete Details में जानने वाले हैं।

जैसे कि ;- 1. Forward Contract क्या होता है ?

2. Forward Contract में सौदे का Settlement कैसे होता है ?

3. Forward Contract के क्या Advantages होते हैं ?

4. Forward Contract के क्या Disadvantages होते हैं ?

1. Forward Contract क्या होता है ?

Forward Contract एक प्रकार का Over-The-Counter (OTC) Derivative Contract होता है जिसका उपयोग Market में किसी वस्तु या चीज की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव की अनिश्चितता (Uncertainty) के जोखिम से बचने के लिए किया जाता है।

Forward Contract में, दो पार्टियाँ आपस में एक दूसरे के साथ एक Fix Time Period के लिए और एक Fix Price पर किसी वस्तु या चीज की एक Fix Quantity का सौदा या Contract करती है, जिसे हम Forward Contract कहते हैं।

Forward Contract एक प्रकार का Over-The-Counter (OTC) Derivative Contract होता है, इसलिए, इन्हें हम Exchange के माध्यम से ट्रेड नहीं कर सकते हैं। 

Forward Contract में, हमें सामने वाली पार्टी से Personally तौर पर मिलना होता है और उनसे मिलकर बातचीत के माध्यम से एक फिक्स Price पर और एक फिक्स Time Period के लिए Contract को तय करना होता है।

चलिए, इसे हम एक Example के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं कि “Forward Contract” क्या होता है ?

मान लेते हैं कि एक रमेश नाम का किसान है, जिसके खेत में प्रतिवर्ष सैंकड़ों क्विंटल गेहूँ की पैदावार होती है।

और दूसरी तरफ, मान लेते हैं कि एक नूडल्स बनाने वाली ABC Limited नाम की कंपनी है।

रमेश को हर साल इस बात का डर रहता है कि कहीं इस साल गेहूँ की कीमतें कम ना हो जाए।

और दूसरी तरफ, नूडल्स बनाने वाली ABC Limited नाम की कंपनी को इस बात का डर रहता है कि कहीं इस साल गेहूँ की कीमतें बढ़ ना जाए।

जिस साल गेहूँ की कीमतें बढ़ती है, उस साल रमेश को फायदा होता है और जिस साल गेहूँ की कीमतें कम होती है, उस साल रमेश को नुकसान का सामना करना पड़ता है।

ठीक इसी प्रकार, दूसरी तरफ नूडल्स बनाने वाली कंपनी ABC Limited के साथ होता है।

जिस साल गेहूँ की कीमतें कम होती हैं, उस साल ABC Limited कंपनी को अपने बिज़नेस में लाभ होता है। और जिस साल गेहूँ की कीमतें बढ़ जाती हैं, उस साल ABC Limited कंपनी को अपने बिज़नेस में नुकसान का सामना करना पड़ता है। क्योंकि कंपनी को अपना बिज़नेस चलाने के लिए हर साल गेहूँ तो खरीदना ही पड़ेगा, चाहे किसी साल गेहूँ की कीमतें बढ़ ही क्यों ना जाए।

दोस्तों, किसी भी बिज़नेस या काम में वस्तुओं और चीजों की कीमतों में इस तरह का उतार-चढ़ाव होना अच्छा नहीं माना जाता है। न तो यह उतार-चढ़ाव किसी कंपनी के लिए अच्छा होता है और न ही किसी किसान के लिए अच्छा होता है।

मान लेते हैं कि जब बाजार में गेहूँ की कीमतें 17 या 18 रुपये प्रति किलोग्राम होती है, तब रमेश को इस कीमत पर गेहूँ बेचने से नुकसान होता है। लेकिन फिर भी उसे बाजार में इसी कीमत पर अपना गेहूँ बेचना पड़ता है।

ठीक इसी प्रकार, जब बाजार में गेहूँ की कीमतें 25 या 26 रुपये प्रति किलोग्राम होती है, तब ABC Limited कंपनी को उस कीमत पर गेहूँ  खरीदना नुकसान भरा होता है। लेकिन फिर भी उसे अपने व्यवसाय को चलाने के लिए बाजार से उसी कीमत पर गेहूँ को खरीदना पड़ता है। 

तो दोस्तों, ऐसी Situation में रमेश और ABC Limited नाम की कंपनी बाजार में गेहूँ की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव (Price Fluctuations) के जोखिम से खुद को बचाने के लिए आपस में एक Contract साइन कर सकते हैं। यह कॉन्ट्रैक्ट एक Fix Time Period के लिए, एक Fix Price पर और एक Fix Quantity के आधार पर किया जाता है। इसमें जितने दिन के लिए वह Contract किया गया है, वह Time Period और जिस Price पर वह Contract किया गया है, वह Price और जितनी Quantity का वह Contract किया गया है, वह Quantity लिखी होती है।

दोस्तों, इस प्रकार के Contract को ही हम “Forward Contract” कहते हैं, जिसमें दो पार्टियाँ बाजार में वस्तुओं और चीजों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव की अनिश्चितता (Uncertainty) के जोखिम से खुद को बचाने के लिए आपस में एक Contract साइन करती हैं।

इस प्रकार के Contract (अनुबंध) किसी बीच की Price पर फिक्स होते हैं, जिस Price पर न तो सामने वाली Party को सामान बेचने में कोई नुकसान होता है और न ही दूसरी Party को सामान खरीदने में कोई नुकसान होता है।

मान लेते हैं कि दोनों पार्टियों के बीच में गेहूँ का यह कॉन्ट्रैक्ट 22 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से फ़िक्स होता है। जिस कीमत पर गेहूँ बेचने से न तो रमेश को कोई नुकसान होता है और न ही नूडल्स बनाने वाली ABC Limited कंपनी को गेहूँ खरीदने में कोई नुकसान होता है।

इस Contract के बाद, न तो रमेश को गेहूँ की Price कम होने का डर होगा और न ही ABC Limited कंपनी को गेहूँ की Price बढ़ जाने का कोई डर होगा।

नोट:- इस Example में आप गेहूँ की जगह किसी भी अन्य वस्तु या चीज को भी ADD कर सकते हैं, जैसे कि ;- Gold, Silver, Energy, Oil, Spices, Rice, Cotton आदि।

दोस्तों, यह केवल एक काल्पनिक उदाहरण है। मुझे उम्मीद है कि आपको इस उदाहरण के माध्यम से समझ में आ गया होगा कि Forward Contract क्या होता है ?

2. Forward Contract में सौदे का Settlement कैसे होता है ?

Forward Contract में सौदे का Settlement दो तरह से किया जाता है।

1. Delivery Settlement

2. Cash Settlement

1. Delivery Settlement 

Delivery Settlement में, जिन वस्तुओं और चीजों का Contract किया जाता है, उन वस्तुओं और चीजों की वास्तविक Delivery सामने वाली Party को कर दी जाती है।

For Example ;- ऊपर दिए गए उदाहरण के अनुसार, रमेश ABC Limited कंपनी को उतने क्विंटल गेहूँ की Delivery कर देता है, जितने क्विंटल गेहूँ का Contract रमेश और ABC Limited कंपनी के बीच में हुआ था। और ABC Limited कंपनी Contract में तय की गई कीमत के आधार पर उतने क्विंटल गेहूँ के पैसों का भुगतान रमेश को कर देती है, और इस तरह से, दोनों पार्टियों के बीच में Contract का Delivery Settlement हो जाता है।

2. Cash Settlement

Cash Settlement में, किसी भी वस्तु या चीज़ की सामने वाली Party को Delivery नहीं की जाती है। इसमें सामने वाली Party को पैसे देकर Contract का Settlement किया जाता है।

चलिए, इसे हम ऊपर दिए गए Example के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं कि “Cash Settlement” कैसे होता है ?

मान लेते हैं कि किसी साल ABC Limited कंपनी को गेहूँ की उतनी Quantity में जरूरत नहीं होती है जितनी Quantity का उन्होंने रमेश के साथ Contract किया था।

मान लेते हैं कि रमेश और ABC Limited कंपनी के बीच में हर साल के लिए 200 क्विंटल गेहूँ का कॉन्ट्रैक्ट हुआ था। लेकिन इस साल कंपनी को केवल 100 क्विंटल गेहूँ की ही आवश्यकता होती है। तो ऐसी Situation में रमेश बाकी का 100 क्विंटल गेहूँ  बाजार में बेच सकता है। अगर बाजार में गेहूँ की कीमत 22 रुपये प्रति किलोग्राम या उससे अधिक होती है, तो इस Situation में ABC Limited कंपनी को कोई भी अतिरिक्त पैसा रमेश को देने की जरूरत नहीं है।

क्योंकि 22 रुपये प्रति किलोग्राम या उससे अधिक की कीमत पर गेहूँ बेचने से रमेश को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं हो रहा है। लेकिन अगर बाजार में गेहूँ की कीमत 22 रुपये प्रति किलोग्राम से कम है, तो इस Situation में ABC Limited कंपनी को ऊपर के पैसों का भुगतान रमेश को करना होगा, ताकि उसे कोई नुकसान न उठाना पड़े।

मान लेते हैं कि बाजार में गेहूँ की कीमत 18 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से चल रही है, तो इस Situation में, ABC Limited कंपनी को ऊपर के चार रूपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से रमेश को देने होंगे।

दोस्तों, ठीक इसी प्रकार मान लेते हैं कि किसी साल रमेश के खेत में केवल 150 क्विंटल गेहूँ की ही पैदावार होती है और वह उस Contract के मुताबिक 200 क्विंटल गेहूँ की Delivery ABC Limited कंपनी को नहीं कर पाता है। तो इस Situation में, ABC Limited कंपनी बाकी का 50 क्विंटल गेहूँ बाजार से खरीद सकती है। अगर बाजार में गेहूँ की कीमत 22 रुपये प्रति किलोग्राम या उससे कम होती है, तो इस Situation में, रमेश को कोई भी अतिरिक्त पैसा ABC Limited कंपनी को देने की आवश्यकता नहीं है। 

क्योंकि 22 रुपये प्रति किलोग्राम या उससे कम कीमत पर गेहूँ खरीदने से ABC Limited कंपनी को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं हो रहा है। लेकिन अगर बाजार में उस समय गेहूँ की कीमत 22 रुपये प्रति किलोग्राम से अधिक है, तो इस Situation में रमेश को ऊपर के पैसों का भुगतान ABC Limited कंपनी को करना होगा, ताकि उसे कोई नुकसान न उठाना पड़े।

मान लेते हैं कि बाजार में गेहूँ की कीमत 27 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से चल रही है, तो इस Situation में, रमेश को ऊपर के पाँच रूपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से ABC Limited कंपनी को देने होंगे।

दोस्तों, मुझे उम्मीद है कि आपको इस उदाहरण के माध्यम से समझ में आ गया होगा कि “Forward Contract” में “Cash Settlement” कैसे होता है।

3. Forward Contract के क्या Advantages होते हैं ?

Forward Contract का जो सबसे बड़ा Advantage होता है, वह यह होता है कि Forward Contract हमें बाजार में वस्तुओं और चीजों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव की अनिश्चितता (Uncertainty) के जोखिम से बचाते हैं।

Forward Contract को हम अपनी जरूरत के अनुसार Customize कर सकते हैं। मतलब कि Forward Contract में हम अपनी जरूरत के अनुसार किसी भी Asset, Commodity, या Security की एक Fix Quantity का सौदा या Contract कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि किसी कुकीज़ बनाने वाली ABC Limited नाम की कंपनी को अपना बिजनेस चलाने के लिए हर साल 100 क्विंटल या फिर 150 क्विंटल गेहूँ की जरूरत होती है। तो वह ABC Limited नाम की कंपनी अपनी जरूरत के अनुसार उतने क्विंटल गेहूँ का Contract किसी भी किसान या मंडी विक्रेता के साथ कर सकती है। 

Forward Contract में हम जितने दिन का चाहें उतने दिन का Contract साइन कर सकते हैं, जैसे कि एक महीने के लिए, दो महीने के लिए, पाँच महीने के लिए, एक साल के लिए, तीन साल के लिए या फिर पाँच साल के लिए।

 Forward Contract को समझना काफी आसान होता है।

4. Forward Contract के क्या Disadvantages होते हैं ?

Forward Contract के तीन मुख्य Disadvantages होते है जो कि निचे दिए गए है।

Default Risk

Default Risk का मतलब होता है कि जिसमें सामने वाली Party Contract में तय की गई कीमत के आधार पर सामान की Delivery करने से इनकार कर देती है, या फिर यह भी हो सकता है कि सामान की Delivery करने के बाद, दूसरी Party Contract में तय की गई कीमत के आधार पर Payment करने से मना कर देती है। तो इस स्थिति में, दोनों पक्षों को अदालत जाना पड़ सकता है, जिससे इस स्थिति का कोई तत्काल समाधान नहीं निकल सकता है।

तो इस प्रकार Forward Contract में Default Risk होने की संभावना बनी रहती है।

चलिए, इसे हम ऊपर दिए गए Example के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं कि Forward Contract में Default Risk कैसे हो सकता है।

मान लेते हैं कि रमेश ABC Limited कंपनी को 22 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से 200 क्विंटल गेहूँ की Delivery करने से इनकार कर देता है, और बाजार में अपने गेहूँ को बेच देता है। क्योंकि बाजार में गेहूँ की कीमत 26 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से चल रही है। या फिर रमेश ABC Limited कंपनी को 22 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से 200 क्विंटल गेहूँ की Delivery कर देता है, लेकिन ABC Limited कंपनी 22 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से रमेश को Payment करने से इंकार कर देती है, क्योंकि बाजार में गेहूँ की कीमत 17 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से चल रही है। या फिर यह भी हो सकता है कि ABC Limited कंपनी रमेश से 22 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से गेहूँ ना खरीद कर बाजार से 17 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से गेहूँ खरीद लें। क्योंकि बाजार में गेहूँ की कीमत Contract में तय की गई कीमत से काफी कम है।

तो दोस्तों, इस प्रकार Forward Contract में Default Risk होने की संभावना बनी रहती है।

Liquidity Risk

Forward Contract दो पार्टियों के बीच में आपसी सहमति से किया जाता है। इसलिए, इसमें Liquidity का जोखिम भी बना रहता है। क्योंकि “Forward Contract” में हम अपना सामान तीसरी पार्टी को उसी कीमत पर नहीं बेच सकते हैं जिस कीमत पर हमने दूसरी पार्टी से Contract किया था।

Regulatory Risk 

जैसा कि दोस्तों हमने ऊपर बात की थी कि Forward Contract दो पार्टियों के बीच में आपसी सहमति से किया जाता है। इसमें कोई Middle Man नहीं होता है और न ही कोई Regulatory या Authority Body होती है, जो इसे Operate करती हो। इसलिए, इसमें Default Risk और Regulatory Risk होने की संभावना बनी रहती है।

Important Points

  • Forward Contract एक प्रकार का Over-The-Counter (OTC) Derivative Contract होता है, इसलिए इन्हें हम Exchange के माध्यम से ट्रेड नहीं कर सकते हैं।
  • Forward Contract का मतलब होता है कि जिसमें दो पार्टियाँ आपस में एक दूसरे के साथ एक Fix Time Period के लिए और एक Fix Price पर किसी वस्तु या चीज की एक Fix Quantity का सौदा या Contract करती है, उसे हम Forward Contract कहते हैं।
  • अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए, कि Forward Contract क्या होता है, तो इसे हम ऐसे कह सकते हैं कि जिसमें दो पार्टियाँ, बाजार में वस्तुओं और चीजों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव की अनिश्चितता (Uncertainty) के जोखिम से खुद को बचाने के लिए आपस में एक Contract साइन करती हैं। उसे हम Forward Contract कहते हैं।
  • Forward Contract में सौदे का Settlement दो तरह से किया जाता है, जैसे कि Delivery Settlement, और Cash Settlement.
  • Forward Contract में कई प्रकार के जोखिम बने रहते हैं, जैसे कि Default Risk, Liquidity Risk, और Regulatory Risk आदि।
  • Forward Contract का उपयोग ज्यादातर Commodity Market में किया जाता है, जैसे कि Energy, Metals, Agricultural Products, और Industry Raw Materials आदि।
  • Forward Contract का उपयोग मुख्य रूप से किसी Asset, Commodity, या Security की फ्यूचर कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव की अनिश्चितता (Uncertainty) के जोखिम से खुद को बचाने के लिए किया जाता है।
  • अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो इसे हम ऐसे कह सकते हैं कि Forward Contract का इस्तेमाल मुख्य रूप से दो पार्टियों के बीच में Hedging के लिए किया जाता है।
  • Forward Contract एक प्रकार की Private Deal होती है जिसमें दोनों पार्टियों के बीच में व्यक्तिगत समझौता (Personal Agreement) होता है।
  • Forward Contract में सौदे का Settlement भविष्य में किसी फिक्स तारीख को किया जाता है, ना कि तुरंत।
  • Forward Contract में सौदे के Rules And Regulations Regulated Market” या “Organized Market” से अधिक व्यक्तिगत (Personal) होते हैं।

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So I Hope कि आपको समझ में आ गया होगा कि Forward Contract क्या होता है ? तो आपको Forward Contract पर हमारा यह Article कैसा लगा, निचे Comments करके जरूर बताइयेगा।

धन्यवाद ।। ”

 

 

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